गुरुवार, 15 नवंबर 2018

भवानी शक्ति स्तोत्र

शिव और शक्ति को अभेद्य नहीं किया जा सकता, शिव के बिना शक्ति के अस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती उसी प्रकार शक्ति की कल्पना शिव के बिना नहीं नही की जा सकती, यह बात ठीक है की शक्ति के बिना शिव भी शव के समान है और शिव का अर्थ अर्ध नारीश्वर स्वरुप भी शिव और शक्ति का संयुक्त स्वरुप है, इसी प्रकार शिवलिंग में वेदी अर्थात बाण और लिंग शिव और शक्ति का स्वरुप है, देवों के देव महादेव है तो जगत की समस्त का स्वरुप भगवती जगदम्बा भवानी हैम, इसी कारण भगवान् सदाशिव भी शक्ति की आराधना करते ही हैं जिसके कारण वे पूर्ण सदाशिव है| भगवान् सदाशिव द्वारा रचित भवानी स्तोत्र शक्ति का जाजवल्यमान स्त्रोत्र है, जिसका पाठ  प्रत्येक स्त्री, पुरुष, सन्यासी, योगी, यति सबको अवश्य ही करना चाहिए, क्योंकि यह संसार शिव और शक्ति का मिलन ही तो है| 

भवानी स्तोतुं त्वां प्रभवति चतुर्भिर्न वदनैः | 
प्रजानामीशानस्त्रीपुरमथनः पञ्चभिरपि | 
न षडिभः सेनानीर्दशशतमुखैरप्यहिपति -
स्तदान्येषां केषां कथय कथमस्मिन्नवसरः || १ || 


गुरुवार, 25 अक्तूबर 2018

श्री गणेश स्त्रोत्रम

दिवस का प्रारंभ गुरु पूजन और गणपति पूजन से होना चाहिए,  विध्नविनाशक गणपति को देवताओं का अधिपति एवं प्रथम पूज्य माना जाता है, जिन्होंने भगवान शंकर और माता पार्वती की परिक्रमा कर संसार में आदर्श स्थापित किया, उन गणेश का ध्यान, वंदन जीवन में निरन्तर कल्याण कारी होता है,जिन के बारे में यह कहा जाता है की -

विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा | 
संग्रामे संकटे चैव विघ्नतस्य न जायते || 

अर्थात विद्या प्रारम्भ करते समय, विववाह के समय, गृह प्रवेश के समय,घर से बाहर जाते समय, यात्रा प्रारम्भ करने से पहले, युद्ध में जाने से पहले, संकट के समय जो विघ्नविनाशक, वरदायक भगवान गणपति की वन्दना करता है उसकी सदैव विजय होती है | क्योंकि जहा गणपति है वहा आदि देव शिव और महादेवी पार्वती भी है, वहा ऋद्धि और सिद्धि है, शुभ और लाभ है,अर्थात जीवन का सम्पूर्ण आनंद है | प्रस्तुत गणेश स्तोत्र गणेश वंदना का महान स्तोत्र है,जिसका नित्य प्रति और विशेष कर बुधवार को तथा प्रत्येक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को अवश्य ही करना चाहिए |

श्री गणेश स्त्रोत्रम 

ॐकारमांद्यं प्रवदन्ति सन्तो वाचः श्रुतिनापि ये गुणन्ति | 
गजानन देवं - गणानतांध्रिं भजेहमर्द्वेन्दु - कृतावतंसम || १ || 

पदारविन्दार्चन तत्पराणां संसार - दावानल भङ्ग -दक्षम | 
निरंतर निर्गत-दान-तोयैस्तं नैमि विघ्नेश्वर मम्बुजाभम || २ || 

कृताङ्ग - रागं नव-कुंकुमेन, मित्ताली - मालां मद - पङ्क - लग्नाम | 
निवारयन्तं निज-कर्ण -तालैः, को विस्मरेत पुत्रमनङ्ग - शत्रोः  || ३ || 

शम्भोर्जटा -जूट - निवासि - गङ्गा - जलं समानीय कराम्बुजेन | 
लीलाभिरारच्छिवमर्चयन्त, गजाननं भक्ति  - युता भजन्ति || ४ || 

कुमार-भक्तौ पुनरात्म-हेतोः, पयोधरौ पर्वत-राज-पुत्र्याः | 
प्रक्षालयन्तं कर-शीकरेण, मौग्ध्येन तं नाग-मुखं भजामि || ५ || 

त्वया समुद्धृत्य गजास्य-हस्तं, संशिकराः पुष्कर-रंन्घ्र-मुक्तः | 
व्यामाङ्गने ते विचरन्ति ताराः, कालात्मना मौक्तिक-तुल्य -भासः || ६ || 

क्रीड़ा-रते  वारि-निधौ गजास्यै, वेलामतिक्रामती वारि -पुरे | 
कल्पावासां परिचिन्त्य देवाः, कैलास-नाथं श्रुतिभिः स्तुवन्ति || ७ || 

नागानने नाग -कृतोत्तरीये, क्रीड़ा-रते देव -कुमार -सङ्गे | 
त्वयि क्षणं काल-गति  विहाय, तौ प्रापतुः कुन्दकुतामिनेन्दु || ८ || 

मदोल्लसत-पञ्च - मुखै रजस्रमध्यापयन्तं सकलागमार्थान | 
देवान ऋषिन भक्त-जनैक-मित्रं, हेरम्बर्कारूणमाश्रयामि || ९ || 

पदाम्बुजाभ्यामति-कोमलाभ्यां, कृतार्थयन्तं कृपया घारित्रीम | 
अकारणं कारणमाप्त-वाचां, तन्नाग -वक्त्रं न जहाति चेतः || १० || 

येनपितं सत्यवती-सुताय, पुराणमालिख्य विषाण -कोट्या | 
तं चन्द्र -मौलेस्तनयं तपोभीराराध्यमानन्द -धनं भजामि || ११ || 

पदं श्रुति-नामपदं स्तुतीनां, लीलावतारं परमात्म-मूर्तैः | 
नागात्मको वा पुरुषात्मको वेत्यभेद्यमाद्यं भेज विघ्न-राजम || १२ || 

पाशांकुशौ भग्नरदं त्वभिष्टं, करैर्दधानं कर-रन्ध्र -मुक्तैः | 
मुक्ता -फलाभैः पृथु-शीकरौधैः, सिञ्चन्तमङ्गं शिवयोर्भजामि || १३ || 

अनेकमेकं गजमेक -दन्तं, चैतन्य-रूपं जगदादि -बीजम | 
ब्रह्मेति यं ब्रह्म-विदो वदन्ति, तं शम्भु-सूनुं सततं भजामि || १४ || 

अङ्के स्थिताया निज-वल्लभाया, मुखाम्बुजालोकन-लोल-नेत्रम | 
स्मेराननाब्जं मद -वैभवेन, रूद्वं भजे विश्व-विमोहनं तम || १५ || 

ये पूर्वमाराध्य गजानन! त्वां, सर्वाणि शास्त्राणि पठन्ति तेषाम | 
त्वत्तो न चान्यत प्रतिपाद्यमस्ति, तदस्ति चेत सत्यमसत्य-कल्पम || १६ || 

हिरण्य वर्ण जगदीशितारे, कवि पुराणं रवि-मंडलस्थं | 
गजानन यं प्रवदन्ति सन्तस्तत काल-योगैस्तमहम प्रपद्ये || १७ || 

वेदान्त गीतं पुरुषं भजेहमात्मानमानन्द - घनं हृदिस्थम | 
गजाननं यन्महसा जनानां, विघ्नान्धकारो विलयं प्रयति || १८ || 

शम्भोः समालोक्य जटा-कलापे, शशाङ्ग-खण्ड निज-पुष्करेण | 
स्व-भग्न-दन्तं प्रविचिन्त्य मौग्ध्यादाकर्ष्टु -कामः श्रीयमातनोतु || १९ || 

विघ्नार्गलानां विनिपातनार्थ, यं नारिकेलैः कदली-फलाद्यैः | 
प्रभावयन्तो मद -वारणास्यं, प्रभुं सदाभीष्टमहं भजतेम || २० || 

यज्ञै रनै कैर्बहुभिस्तपोभिराराध्यमाद्यं  गज राज वक्त्रम | 
स्तुत्यानया ये विधिना स्तुवन्ति, ते सर्व-लक्ष्मी -निधयो भवन्ति || २१ || 

|| श्री गणेश-स्तोत्रम सम्पूर्णम ||