शुक्रवार, 18 नवंबर 2011

कनकधारा स्तोत्र

अंग हरे  पुलकभूषणमाश्रयंती , भृंगागनेव  मुकुलाभरणं  तमालम |
अंगीकृताखिलविभूतिर पांग  लीला, मांगल्यदास्तु  मम मंगदेवताया  || १ ||

मुग्धा  मुहुर्विदधाति  वदने  मुरारेः ,  प्रेमत्रपाप्रणिहितानि  गतागतानि |
माला  दुशोर्मधुकरीय  महोत्पले  या, सा  में  श्रियं  दिशतु  सागरसंभवायाः || २ ||

विश्वासमरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्ष , मानन्दहेतुरधिकं  मधुविद्विषो  पि  |
इषन्निषीदतु    मयी  क्षणमीक्षर्णा, मिन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः  || ३ ||

आमीलिताक्षमधिगम्य  मुदा मुकुन्द, मानन्दकन्मनिमेषमनंगतन्त्रम   |
आकेकरस्थितिकनीकिमपक्ष्म  नेत्रं, भूत्यै  भवेन्मम  भुजंगशयांगनायाः  || ४ ||

बाह्यंतरे   मधुजितः  श्रितकौस्तुभे  या, हारावलीव  हरीनिलमयी  विभाति  |
कामप्रदा  भागवतोपी  कटाक्ष  माला, कल्याणमावहतु  मे  कमलालायायाः  || ५ ||

कालाम्बुदालितलिसोरसी  कैटमारे, धरिधरे स्फुरति या तु  तडंग  दन्यै |
मातुः  समस्तजगताम  महनीयमूर्ति , र्भद्राणि  मे दिशतु  भार्गवनन्दनायाः  || ६ ||

प्राप्तम पदं  प्रथमतः  किल  यत्प्रभावान, मांगल्यभाजि  मधुमाथिनी  मन्मथेन   |
मययापतेत्तदिह  मन्थन  मीक्षर्णा, मन्दालसम  च  मकरालयकन्यकायाः   || ७ ||

दाद  दयानुपवनो  द्रविणाम्बुधारा, मस्मिन्न  वि  किंधनविहंगशिशौ  विपाणे  |
दुष्कर्मधर्म  मापनीय  चिराय  दूरं, नारायणप्रगणयिनीनयनाम्बुवाहः  || ८ ||

इष्ट  विशिष्टमतयोपी  यया  दयार्द्र, दुष्टया त्रिविष्टपपदं  सुलभं  लर्भते  |
दृष्टिः  प्रहष्टकमलोदरदीप्तिरीष्टां, पुष्टि  कृपीष्ट  मम  पुष्करविष्टरायाः   || ९ ||

गीर्तेवतेती  गरुड़ध्वजभामिनीति, शाकम्भरीति  शशिशेखरवल्लभेति  |
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु  संस्थितायै, तस्यै  नमास्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुन्यै  || १० ||

क्ष्फत्यै  नमोस्तु  शुभकर्मफलप्रसूत्यै,  रत्यै  नमोस्तु  रमणीयगुणार्णवायै   |
शक्त्यै  नमोस्तु  शतपनिकेतनायै, पुष्ट्यै  नमोस्तु  पुरुषोत्तम वल्लभायै || ११ ||

नमोस्तु  नालीकनिभान्नायै, नमोस्तु  दुग्धोदधिजन्म  भूत्यै |
नमोस्तु  सोमामृतसोदरायै , नमोस्तु  नारायणवल्लभायै   || १२ |

सम्पत्कराणि  सकलेन्द्रियनन्दनानि, साम्राज्यदान विभवानि  सरोरुहाक्षि  |
त्वद्वन्द्वनानि  दुरिताहरणोद्यतानी , मामेव मातरनिशं कलयन्तु  नान्यम  || १३ ||

यत्कटाक्ष समुपासनाविधिः, सेवकस्य सकलार्थ सम्पदः  |
संतनोति  वचनांगमान, सैस्त्वां  मुरारीहृदयेश्वरीं भजे  || १४ ||

सरसीजनिलये  सरोजहस्ते, धवलतमांशु -कगंधमाल्य  शोभे  |
भगवती  हरिवल्लभे  मनोज्ञे, त्रिभुवन भूतिकरि  प्रसीद  मह्यं  || १५ ||

दिग्धस्तिभिः  कनककुम्भमुखावसृष्ट, स्वर्वाहिनीतिमलाचरूजलप्तुतांगम  |
प्रातर्नमामि  जगताम  जननीमशेष, लोकाधिनाथ  गृहिणीम मृताब्धिपुत्रिम || १६ ||

कमले  कमलाक्षवल्लभे, त्वम्, करुणापूरतरंगितैपरपाडयै    |
अवलोकय  ममाकिंचनानां, प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः  || १७ ||

स्तुवन्ति  ये  स्तुतिभिरमू भिरन्वहं, त्रयोमयीं  त्रिभुवनमातरम  रमाम  |
गुणाधिका  गुरुतरभाग्यभामिनी, भवन्ति  ते  भुवि  बुधभाविताशयाः    || १८ ||

मंगलवार, 1 नवंबर 2011

महालक्ष्मी अष्टकम ( महालक्ष्म्यष्टकं )

नमस्तेस्तु   महामाये  श्रीपीठे  सुरपूजिते  |
शंखचक्रगदाहस्ते  महालक्ष्मी  नमोस्तुते  || 

नमस्ते  गरुडारुढे   कोलासूरभयंकरी  |
सर्वपापहरे  देवी  महालक्ष्मी  नमोस्तुते  || 

सर्वज्ञे  सर्ववरदे  सर्वदुष्टभयंकरी  |
सर्वदुःखहरे  देवी  महालक्ष्मी  नमोस्तुते  || 

सिद्धिबुद्धिप्रदे देवी भुक्तिमुक्तिप्रदायिनी  |
मन्त्रपूते  सदा  देवी  महालक्ष्मी  नमोस्तुते  || 

आध्यान्तराहित  देवी आदयशक्ति महेश्वरी  |
योगजे  योगसम्भूते  महालक्ष्मी  नमोस्तुते  || 

स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे  महा शक्ति महोदरे |
महापापहरे  देवी महालक्ष्मी  नमोस्तुते  || 

पद्द्न्यासनस्थिते देवी परब्रह्मस्वरूपिणी |
परमेशी   जगन्मातर्महालाक्ष्मी नमोस्तुते  ||

श्वेताम्बरधरे देवी नानालंकारभूषिते |
जगतस्थिते  जगन्मातर्महालाक्ष्मी नमोस्तुते  ||

महालक्ष्म्यष्टकं  स्तोत्रं  यः  पठेभ्दक्तिमान  नरः  |
सर्वसिद्धिमवाप्नोती  राज्यं  प्राप्नोति  सर्वदा  ||

एककाले  पठेन्नित्यं  महापापविनाशनम  |
व्दिकालम  यः  पठेन्नित्यं  धनधान्यसमन्वितः  |

त्रिकाल  यः  पठेन्नित्यं  महाशत्रुविनाशनम  |
महालक्ष्मिर्भवेन्नित्यम  प्रसन्न  वरदा शुभ  ||

!! इतिन्द्रकृतम  महालक्ष्म्यष्टकं संपूर्णम  !!

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शनिवार, 29 अक्तूबर 2011

शिव आरती

कर्पूरगौरं  करूणावतारम  , संसारसारं  भुजगेन्द्र हारम  |
सदा  वसन्तं  हृदयारविन्दे  भवं  भवानी  सहितं  नमामि ||

जय  शिव  ओमकारा, भज  शिव  ओमकारा  |
ब्रह्मा  विष्णु  सदाशिव , अर्व्दांगी   धारा ||
                                ॐ  हर  हर  हर  महादेव  |

एकानन  चतुरानन  पंचानन  राजै   |
हंसानन  गरुडासन  वृषवाहन  साजै   ||
                                ॐ  हर  हर  हर  महादेव  |

दो  भुज  चारु  चतुर्भुज  दशभुज  अति  सोहै  |
तीनो  रूप  निरखते  त्रिभुवन जन  मोहे  ||
                                ॐ  हर  हर  हर  महादेव  |

अक्षमाला  वनमाला  रुन्दमाला  धारी  |
त्रिपुरानाथ  मुरारी  करमाला  धारी  ||
                                ॐ  हर  हर  हर  महादेव  |

श्वेताम्बर  पीताम्बर  बाघाम्बर  धारी  |
संकादिक  गरुडादिक  भूतादिक  संगे  ||
                                ॐ  हर  हर  हर  महादेव  |

कर  मध्ये  सुकमंडल चक्र  त्रिशूल  धरता  |
सुखकर्ता  दुखाकर्ता  सुख  में  शिव  रहता  ||
                                ॐ  हर  हर  हर  महादेव  |

काशी  में  विश्वनाथ  विराजे  नन्दी  ब्रह्मचारी  |
निट  उठ  ज्योत  जलावत  दिन -दिन  अधिकारी  ||
                                ॐ  हर  हर  हर  महादेव  |

त्रिगुणास्वामी   की  आरती  जो  कोई  नर  गावे,
ज्योरे  मन  शुद्ध  होय  जावे , ज्योरें  पाप  परा  जावे ,
ज्योरे  सुख  सम्पति  आवे , ज्योरे  दुःख  दारिद्र्य  जावे,
ज्योरे  घर  लक्ष्मी  आवे, भनत  भोलानंद  स्वामी,
रटत  शिवानन्द  स्वामी  इच्छा  फल  पावे  ||
                                ॐ  हर  हर  हर  महादेव  |

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गुरुवार, 27 अक्तूबर 2011

महा लक्ष्मी जी की आरती

ॐ  जय  लक्ष्मी  माता, मैय्या  जय  लक्ष्मी  माता ,
तुम  को  निस  दिन  सेवत, हर  विष्णु  धाता  |
                                              ॐ  जय  लक्ष्मी  माता  ||

उमा  रमा  ब्रह्माणी, तुम  ही  जग  माता ,
सूर्य  चन्द्रमा  ध्यावत, नारद  ऋषि  गाता  |
                                              ॐ  जय  लक्ष्मी  माता  ||

दुर्गा  रूप  निरंजनी, सुख  सम्पति  दाता ,
जो  कोई  तुमको  ध्यावत, रिद्धि  सिद्धि   धन  पाता  |
                                              ॐ  जय  लक्ष्मी  माता  ||

तुम  पाताल  निवासिनी, तुम  शुभ  दाता ,
कर्म  प्रभाव  प्रकाशिनी, भव  निधि  की  दाता  |
                                              ॐ  जय  लक्ष्मी  माता  ||

जिस  घर  तुम  रहती, तहं  सब  सदगुण  आता ,
सब  संभव  हो  जाता, मन  नहीं  घबराता |
                                              ॐ  जय  लक्ष्मी  माता  ||

तुम  बिन  यज्ञ  न  होते, वस्त्र  न  कोई  पाता ,
खान  पान  का  वैभव, सब  तुम  से  आता  |
                                              ॐ  जय  लक्ष्मी  माता  ||

शुभ  गुण  मंदिर  सुन्दर, क्षीरोदधि  जाता |
रत्ना चतुर्दश तुम  बिन, कोई  नहीं  पाता  |
                                              ॐ  जय  लक्ष्मी  माता  ||

महा लक्ष्मी  जी  की  आरती, जो  कोई  नर  गाता ,
उर  आनंद  समाता, पाप  उतर  जाता  |
                                              ॐ  जय  लक्ष्मी  माता  ||

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शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

दुर्गा आरती - ॐ जय अम्बे गौरी

जय अम्बे गौरी, मैया जय अम्बे गौरी |
तुमको निसदिन ध्यावत, हरी ब्रह्मा शिवरी ||
                                   ॐ जय  अम्बे  गौरी  ...

मांग सिन्दूर  विराजत तीको  मृद मदको |
उज्वल  से  दो  नैना, चन्द्र  वदन  नीको ||
                                   ॐ जय  अम्बे  गौरी  ...

कनक समान कलेवर रक्ताम्बर रजै |
रक्त पुष्प गल माला कंठन पर सजै ||
                                   ॐ जय  अम्बे  गौरी  ...

केहारी वाहन राजत खडग खापर धारी |
सुर नर मुनिजन सेवत, तिनके दुखहारी ||
                                   ॐ जय  अम्बे  गौरी  ...

कानन कुंडल शोभित नासाग्रे  मोती |
कोटिक चन्द्र  दिवाकर  सम्राजत ज्योति ||
                                   ॐ जय  अम्बे  गौरी  ...

शुम्भ निशुम्भ विदारे महिषासुर घाटी |
धूम्रविलोचन नैना  निसदिन  मदमाती ||
                                   ॐ जय  अम्बे  गौरी  ...

चंड मुंड  संहारे  शोंनित बीज हारे |
मधु कैटभ  दौ  मारे  सुर भय दूर  करे ||
                                   ॐ जय  अम्बे  गौरी  ...

ब्रह्मानी  रुद्रानी तुम कमला रानी |
अगम निगम बखानी तुम शिव पटरानी ||
                                   ॐ जय  अम्बे  गौरी  ...

चौसष्ट योगिनी गावत नृत्य करत भैरो |
बाजत ताल मृदिंगा और बाजत डमरू ||
                                   ॐ जय  अम्बे  गौरी  ...

तुम  ही  जग  की  माता  तुम  ही  हो  भ्राता |
भक्तन की दुःख  हरता  सुख  सम्पति  करता ||
                                   ॐ जय  अम्बे  गौरी  ...

भुजा  अष्ट  अति  शोभित  वर  मुद्रा  धारी .
मन  वांछित  फल  पावत  सेवत  नर  नारी 
                                   ॐ जय  अम्बे  गौरी  ...

कंचन  ताल  विराजत  अगर  कपूर  बाती |
श्री  माल  केतु  में  राजत  कोटि  रत्न  ज्योति ||
                                   ॐ जय  अम्बे  गौरी  ...

श्री  अम्बे  जी  की  आरती  जो  कोई  नर  गावे|
कहत  शिवानन्द  स्वामी  सुख  सम्पति  पावै ||
                                   ॐ जय  अम्बे  गौरी  ...

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शनिवार, 25 जून 2011

संकट नाशन गणेश स्तोत्र

प्रणम्य शिरसा देवं  गौरी  पुत्रं  विनायकं |
भक्तावासं  स्मरेन्नित्य-मायुः  कामार्थ  सिद्धये  || 1 ||

प्रथमं  वक्रतुंडम  च एकदंतं  व्दितीयकम |
तृतीयं कृष्ण - पिंगाक्षं  गजवक्त्रं  चतुर्थकम  || 2 ||

लम्बोदरं पंचमं च  षष्ठं  विकटमेव  च  |
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं  धूम्रवर्णं  तथाष्टकम  || 3 ||

नवमं  भलाचंद्रम  च  दशमं  तु  विनायकं |
एकादशं  गणपति व्दादशम  तु  गजाननं || 4 ||

व्दाद -शैतानी  नामानी  त्रिसंध्यं  यः  पठैन्नरः   |
न  च  विघ्नभयं  तस्य  सर्वसिद्धिकरं   परम  || 5 ||

विद्यार्थी लभते  विद्यां धनार्थी  लभते  धनम  |
पुत्रार्थी  लभते  पुत्रान  मोक्षार्थी  लभते  गतिम्  || 6 ||

जपेद  गणपति-स्तोत्रं  षड्भिर्मासै:   फलं  लभेत |
संवत्सरेण  सिद्धिं च लभते  नात्र  संशयः || 7 ||

अष्ठभ्यो  ब्राह्मनेभ्यश्च लिखित्वा  यः  समर्पयेत |
तस्य  विद्या भवेत् सर्व गणेशस्य प्रसादतः || 8 ||

| इति  श्री नारद  पुराने संकट नाशनं गणेश स्तोत्रं  सम्पूर्णं  |

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शनिवार, 12 फ़रवरी 2011

शिव सिद्धि सर्व रक्षाकारक प्रासाद कवच


विनियोग: ॐ अस्य श्रीसदा -शिव -प्रासाद -मन्त्र -कवचस्य  श्रीवामदेव  ऋषिः , पंक्ति छंद, श्रीसदा-शिव  देवता, अभीष्ट -सिद्ध्यर्थे  पाठे  विनियोगः  |

ऋषादि  न्यास: श्रीवामदेव -ऋषये  नमः शिरसी | पंक्तिश्छंद से नमः मुखे  | श्रीसदा -शिव -देवतायै  नमः  ह्रदि | अभीष्ट -सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगाय नमः  सर्वांगे |

ॐ  शिरो  मे  सर्वदा  पातु  प्रासादाख्यः  सदा-शिवः  |
षडक्षर-स्वरूपो  मे , वदनं  तु  महेश्वरः || १ ||

अष्टाक्षरः  शक्ति -रूद्रश्चक्षुषी   मे  सदावतु  |
पंचाक्षरात्मा भगवान् भुजौ मे  परी-रक्षतु  || २ ||

मृत्युन्जयस्त्रि  -बीजात्मा , आयु रक्षतु मे सदा  |
वट-मूल - समासीनो , दक्षिणा -मूर्त्तिरव्ययः     || ३ ||

सदा मां  सर्वतः पातु , षट  -त्रिंशार्ण - स्वरुप -धृक  |
द्वा -विंशार्णात्मको  रुद्रः, कुक्षी मे  परी-रक्षतु  || ४ ||

त्रि - वर्णात्म  नील - कंठः , कंठं  रक्षतु  सर्वदा  |
चिंता -मणिर्बीज-रूपो, अर्द्व -नारीश्वरो  हरः  || ५ ||

सदा रक्षतु मे गुह्यं, सर्व - सम्पत -प्रदायकः  |
एकाक्षर -स्वरूपात्मा , कूट - रुपी  महेश्वरः  || ६ ||

मार्तंड -भैरवो  नित्यं, पादौ मे  परी-रक्षतु  |
तुम्बुराख्यो  महा-बीज-स्वरूपस्त्रीपुरान्तकः     || ७ ||

सदा मां रण-भूमौ  च, रक्षतु त्रि-दशाधिपः |
उर्ध्व -मूर्द्वानमीशानो, मां रक्षतु सर्वदा  || ८ ||

दक्षिणास्यां   तत्पुरुषोsव्यान्मे  गिरी-विनायकः |
अघोराख्यो  महा-देवः, पूर्वस्यां परी-रक्षतु  || ९ ||

वामदेवः पश्विमस्यां, सदा मे परी-रक्षतु |
उत्तरस्यां  सदा पातु, सद्योजात-स्वरुप-धृक || १० ||

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शनिवार, 5 फ़रवरी 2011

शिव पंचाक्षर स्तुति

नागेन्द्र हाराय त्रिलोचनाय, 
भस्मांगरागाय  महेश्वराय | 

नित्याय  शुद्धाय दिगम्बराय,
तस्मै   'न'   काराय  नमः शिवाय  ||१||

मन्दाकिनी  सलिलचन्दनचर्चिताय ,
नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय |

मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय ,
तस्मै 'म' काराय  नमः  शिवाय  ||२ ||

शिवाय  गौरीवदनाब्जवृन्द ,
सूर्याय दक्षध्वरनाशकाय |

श्रीनीलकंठाय    वृष ध्वजाय,
तस्मै  'शि' काराय  नमः  शिवाय  || ३ ||

वशिष्ठकुम्भोदभवतौतमार्य ,
मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय  |

चंद्रार्कवैश्वानरलोचनाय ,
तस्मै  'व्'  काराय  नमः  शिवाय  || ४ ||

यक्षस्वरूपाय जटाधराय ,
पिनाकहस्ताय सनातनाय |

दिव्याय देवाय दिगम्बराय,
तस्मै  'य' काराय  नमः  शिवाय  || ५ ||

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मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011

आरती कुंज बिहारी की .. श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी कि

आरती कुंज बिहारी की |
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की |

गले मे बैजंती माला  |
      बजावै मुरली मधुर बाला |  

श्रवण में कुंडल झलकाला |
नन्द के आनंदनन्दलाला  |

गगन सम अंग कान्तिकाली |
     राधिका चमक रही आली |

लतन में ठाढे बनमाली |
भ्रमर सी अलक |

कस्तूरी तिलक, चन्द्र सी झलक  |
ललित छबि  श्यामा  प्यारी  की  |

श्री  गिरिधर  कृष्ण  मुरारी  की, आरती  कुंज  बिहारी  की  |

कनकमय मोर  मुकुट बिलसे  |
देवता  दरसन  को  तरसै  |

गगनसों  सुमन रासी  बरसे  |
बजै मुरचंग |

मधुर मिरदंग ग्वालानी संग  |
अतुल रति गोप कुमारी की  |

श्री  गिरिधर  कृष्ण  मुरारी  की, आरती  कुंज  बिहारी  की  |

जहां ते प्रकट भई गंगा  |
सकल मल हारिणी श्रीगंगा  |

स्मरण ते होत मोह भंगा |
बसी शिव सीस जटा  के बीच  |

हरै अध् कीच | 
चरण छवि श्री बनवारी  की  |

श्री  गिरिधर  कृष्ण  मुरारी  की, आरती  कुंज  बिहारी  की  |

चमकती उज्जवल तटरेनु    |
बज रही वृन्दावन बेनु |

चहूंदिसि  गोपी ग्वाल धेनु |
हसत मृदुमंद चांदनी चंढ   |

कटत भव  फंद  |
पीर सुन  दीन  दुखारी की  |

आरती कुंज बिहारी  की  |
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी  कि  |

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शनिवार, 29 जनवरी 2011

आद्या काली स्तोत्र

त्रिलोक्य  विजयस्थ  कवचस्य  शिव ऋषि , 
अनुष्टुप  छन्दः, आद्य काली देवता, माया बीजं, 
रमा  कीलकम , काम्य सिद्धि विनियोगः || १ ||

ह्रीं आद्य मे शिरः पातु श्रीं  काली वदन  ममं, 
हृदयं क्रीं परा शक्तिः पायात  कंठं  परात्परा ||२||

नेत्रौ पातु जगद्धात्री करनौ रक्षतु शंकरी,
घ्रान्नम पातु महा माया  रसानां  सर्व मंगला ||३||

दन्तान रक्षतु कौमारी  कपोलो कमलालया, 
औष्ठांधारौं  शामा रक्षेत चिबुकं चारु हासिनि ||४| 

ग्रीवां पायात  क्लेशानी  ककुत पातु कृपा मयी,
द्वौ बाहूबाहुदा  रक्षेत  करौ  कैवल्य दायिनी ||५||

स्कन्धौ  कपर्दिनी पातु पृष्ठं  त्रिलोक्य तारिनी,
पार्श्वे पायादपर्न्ना मे कोटिम मे कम्त्थासना ||६||

नभौ  पातु विशालाक्षी प्रजा स्थानं प्रभावती,
उरू रक्षतु कल्यांनी  पादौ मे  पातु  पार्वती ||७||

जयदुर्गे-वतु  प्राणान  सर्वागम सर्व  सिद्धिना,
 रक्षा हीनां  तू यत  स्थानं  वर्जितं  कवचेन  च ||८||

इति ते कथितं दिव्य  त्रिलोक्य  विजयाभिधम,
कवचम कालिका देव्या आद्यायाह परमादभुतम ||९||

पूजा काले पठेद  यस्तु आद्याधिकृत मानसः,
सर्वान कामानवाप्नोती  तस्याद्या सुप्रसीदती ||१०||

मंत्र सिद्धिर्वा-वेदाषु  किकराह शुद्रसिद्धयः,
अपुत्रो लभते पुत्र धनार्थी प्राप्नुयाद धनं ||११|

विद्यार्थी लभते विद्याम कामो कामान्वाप्नुयात 
सह्स्त्रावृति पाठेन वर्मन्नोस्य पुरस्क्रिया ||१२||

पुरुश्चरन्न  सम्पन्नम यथोक्त फलदं  भवेत्,
चंदनागरू  कस्तूरी कुम्कुमै  रक्त चंदनै ||१३||

भूर्जे विलिख्य गुटिका स्वर्नस्याम धार्येद यदि,
शिखायां दक्षिणे  बाह़ो कंठे वा साधकः कटी ||१४||

तस्याद्या  कालिका वश्या वांछितार्थ प्रयछती, 
न कुत्रापि भायं तस्य सर्वत्र विजयी कविः ||१५||

अरोगी  चिर  जीवी  स्यात  बलवान  धारण शाम,
सर्वविद्यासु निपुण सर्व  शास्त्रार्थ  तत्त्व  वित्  ||१६||

वशे तस्य  माहि पाला भोग मोक्षै   कर  स्थितो,
 कलि  कल्मष युक्तानां निःश्रेयस   कर  परम ||१७||

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