रविवार, 21 अक्तूबर 2018

गुर्वष्टकम (गुरु अष्टकम)

श्री सद्गुरुवे नमः

शरीरं सुरूपं  तथा वा कलत्रं यशश्चारु चित्रं धनं मेरूतुल्यम |
गुरोरङिंध्रपदमे मनश्चेन्न लग्नं  ततः किं ततः किं ततः किं ततः किं  ||

कलत्रं  धनं  पुत्रपौत्रादि सर्वं गृहं बान्धवाः सर्वमितादि जातम |
गुरोरङिंध्रपदमे मनश्चेन्न लग्नं  ततः किं ततः किं ततः किं ततः किं  ||

षडंगादि वेदो मुखे शास्त्रविद्या कवित्वादि  गद्यं सुपद्यं करोति |
गुरोरङिंध्रपदमे मनश्चेन्न लग्नं  ततः किं ततः किं ततः किं ततः किं  ||

विदेशेषु मान्यः स्वदेशेषु धन्यः सदाचारवृत्तेषु भक्तो न चान्यः |
गुरोरङिंध्रपदमे मनश्चेन्न लग्नं  ततः किं ततः किं ततः किं ततः किं  ||

क्षमामण्डले भूपभूपालवृन्दैः सदा सेवितं यस्य पादारविन्दम |
गुरोरङिंध्रपदमे मनश्चेन्न लग्नं  ततः किं ततः किं ततः किं ततः किं  ||

यशो मे गतो दिक्षु दानप्रतापाज्जगद्वस्तु सर्वं करे मत्प्रसादात |
गुरोरङिंध्रपदमे मनश्चेन्न लग्नं  ततः किं ततः किं ततः किं ततः किं  ||

न भोगो न योगो न वा वाजीराजो न कान्तामुखे नैव वित्तेषु चित्तम |
गुरोरङिंध्रपदमे मनश्चेन्न लग्नं  ततः किं ततः किं ततः किं ततः किं  ||

अरण्ये न वा स्वस्य गेहे न कार्ये न देहो मनो वर्तते में त्वदन्ये |
गुरोरङिंध्रपदमे मनश्चेन्न लग्नं  ततः किं ततः किं ततः किं ततः किं  ||

अनर्ध्याणि रत्नानी भुक्तानी सम्यक समालिडिगिता कामिनी यामिनिषु |
गुरोरङिंध्रपदमे मनश्चेन्न लग्नं  ततः किं ततः किं ततः किं ततः किं  ||

गुरोरष्टकं यः पठेत पुण्यदेही यतिर्भूपतिर्ब्रह्मचारी च गेही |
लभेदुछिंतार्थं पदं ब्रह्मसां गुरोरूक्तवाक्ये मनो यस्य लर्गंम ||

इति श्रीमच्छकराचार्य कृतं गुर्वष्टकं सम्पूर्णम

श्री सद्गुरु  को नमस्कार है | आचार्य शंकर कहते है कि यदि शरीर सुन्दर, स्री भी सुन्दर ,अद्भुद, विशद यश और सुमेरु पर्वत के समान विपुल धन प्राप्त है, पर मन श्रीसद्गुरु के चरण कमल में नहीं लगा तो उससे क्या लाभ? जिसे स्त्री, धन, पुत्र-पौत्रादि आदि सारा कुटुम्ब, गृह, बान्धव - ये सब भले ही प्राप्त हो गए, जिसके मुख में छहो अंगो सहित वेद तथा छह शास्त्रों की  विद्या विद्यमान है और सुन्दर गद्य-पद्यावली कविता भी करता है,जिसका विदेशों में भी भारी सम्मान है,स्वदेश में भी जो धन्य माना जाता है तथा जिसके समान दूसरा कोई सदाचारी भक्त नहीं है, भूमण्डल के सभी राज समूहों द्वारा जिसके चरण कमल सदा सेवित हैं, दान के प्रताप से  दिशाओं में यश प्राप्त है, सारी वस्तुएं करतलग हैं, चित्त न भोग में लगता हैं, न योग में, न धन में आसक्त होता है, फिर भी उसका मन यदि श्री सद्गुरु के चरणों में नहीं लगा तो उससे क्या लाभ? यद्यपि मेरा मन  व वन  में न अपने घर में, न कार्य में और बहुमूल्य शरीर में लगता है, फिर भी यदि वह श्री सद्गुरु के  चरण कमल में न लगा तो उससे क्या लाभ? जिसका मन गुरु के समोचित वाक्यों में लगा हुआ है, जो पवित्रकाय, संन्यासी, राजा, ब्रह्मचारी या गृहस्थ इस गुर्वष्टकं स्तोत्र का पाठ करेगा, उसे अभीप्सित 'ब्रह्म' नाम पद की प्राप्ति होगी |

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